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सडन कार्डियक अरेस्ट रोकने के लिए 63 साल के पुरुष में एस-आईसीडी इंप्लांट किया गया

दिल्ली   एनसीआर , 22  फरवरी , 2022:  फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के चिकित्सकों ने हाल ही में सबक्यूटेनियस इंप्लाटेबल कार्डियोवर्टर डिफिब्रिले...

दिल्ली एनसीआर, 22 फरवरी, 2022: फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के चिकित्सकों ने हाल ही में सबक्यूटेनियस इंप्लाटेबल कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर (एस-आईसीडीइंप्लांट कर 63 साल के एक व्यवसायी को नया जीवन दिया है। मरीज बेचैनी और सीने में तेज दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल आया था। जांच करने परउन्हें दिल की अनियमित धड़कन और हृदय की घटी हुई क्षमता का पता चला। इससे सडन कार्डियक अरेस्ट (एससीएकी आशंका बढ़ जाती है।


 


इस मामले में पारंपरिक आईसीडी थेरेपी की बजाय गैर परंपरागत चिकित्सा की सिफारिश की गई क्योंकि मरीज मोटापाडायबिटीज जैसी अन्य बीमारियों से पीड़ित था। इससे वह एससीए के उच्च जोखिम में पहुंच गया था। इसके तहत एक डिफिब्रिलेटर को त्वचा के नीचे लगा दिया जाता है। ऐसा करते हुए रक्त वाहिकाओं को नहीं छेड़ा जाता है क्योंकि डायबिटीज के मरीज में संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

 

एस-आईसीडी इम्प्लांट मरीज को एससीए से बचाता है और इसमें वह मरीज के हार्ट चैम्बर्स को छूता भी नहीं है। पारंपरिक आईसीडी की तरहएस-आईसीडी सिस्टम जीवन रक्षक चिकित्सा देने में सक्षम है। पारंपरिक आईसीडी से अलगएस-आईसीडी सिस्टम त्‍वचा के नीचे लगे तार का उपयोग करता है और ईसीजी परीक्षण की तरह हृदय के लय का विश्लेषण करता है। जीवन के लिए खतरनाक हृदय गति को प्रभावी ढंग से समझनेउन्हें अलग करने और खतरनाक हृदय गति को सामान्य हृदय गति में बदलने वाला एस-आईसीडी इंप्लांट उन युवा मरीजों के लिए महत्वपूर्ण है जिनकी जीवन प्रत्याशा लंबी है।

 

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूटगुरुग्राम और फोर्टिस हॉस्पिटलवसंतकुंजनई दिल्ली के फोर्टिस हार्ट एंड वैस्‍क्‍युलर इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ. टी.एस. क्लेर ने कहा, "एस-आईसीडी जैसी नई चिकित्सा हृदय रोगों के मामले में अच्छे परिणाम दे रही है। इस मामले में रोगी को डायबिटीज भी था। इससे उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक था अन्यथाआईसीडी जैसी पारंपरिक चिकित्सा का सुझाव दिया गया होता। चूंकि एस-आईसीडी को हृदय के बाहर रखा जाता हैजिसमें कोई तार संपर्क में नहीं होता हैइससे संक्रमण का खतरा कम हो जाता हैऔर रोगी को एससीए जैसी घातक हृदय स्थितियों से सुरक्षा मिलती है। बहुत से रोगियों को संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए उपलब्ध पारंपरिक आईसीडी के इस विकल्प की जानकारी नहीं है। लेकिन इस मामले मेंरोगी और उसके परिवार की जागरूकता तथा चिकित्सक परामर्श ने उसे अपने लिए सर्वश्रेष्ठ उपकरण चुनने में मदद की।"

 

भारत में डायबिटीज के मामले बहुत ज्यादा है और अन्‍य लोगों की तुलना में मधुमेह से पीड़ित लोगों में सर्जरी के दौरान संक्रमण का ज्‍यादा डर होता है। अधिकांश रोगियों में अचानक हृदय गति रुकने का खतरा होता है। वैसे तोपारंपरिक आईसीडी एससीए की रोकथाम में बहुत प्रभावी हैं लेकिन इस तरह के रोगियों में यह एक चुनौती है। इसलिए एस-आईसीडी अब सबसे अच्छा उपचार विकल्प साबित हुआ है।

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