‘‘एक महिला को एक महिला से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता’’, यह कहना है एण्डटीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ की तन्वी डोगरा का - Shudh Entertainment

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‘‘एक महिला को एक महिला से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता’’, यह कहना है एण्डटीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ की तन्वी डोगरा का

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस‘ के मौके पर एण्डटीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं‘ की स्वाति यानी तन्वी डोगरा ने बताया कि एक महिला होना क्या ह...

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस‘ के मौके पर एण्डटीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं‘ की स्वाति यानी तन्वी डोगरा ने बताया कि एक महिला होना क्या होता है। उन महिलाओं के बारे में बात की, जिन्हें वह मानती हैं और एक सशक्त महिला किरदार निभाने के बारे में भी बताया। उनसे हुई बातचीत के अंश यहां दिये गये हैंः 

1.अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विषय ‘वीमन इन लीडरशिप: अचीविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वल्र्ड‘ (‘नेतृत्व में महिलाएंः कोविड-19 की दुनिया में समान भविष्य हासिल करना‘), आपके लिये क्या मायने रखता है?

कोविड-19 से एक चीज हम सबने सीखी है कि इससे फर्क नहीं पड़ता क्या परिणाम होने वाला है। सभी लोग इससे किसी ना किसी रूप में प्रभावित हुए हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर कोविड-19 का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव ज्यादा पड़ा है। महिलाओं के कंधों पर बिना वेतन के देखभाल करने का अतिरिक्त बोझ आ गया। अन्य चीजों के अलावा, इसका प्रभाव महिलाओं के रोजगार पर भी पड़ा। उन बढ़ी हुई जिम्मेदारियों की वजह से महिलाएं शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से बोझ तले दब गयी थीं। चूंकि, हम रिकवरी मोड की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, ऐसे में महिलाओं के लिये जेंडर के अनुकूल भूमिकाएं पहले से ज्यादा अहम हैं। वह भी पहले से ज्यादा सपोर्ट और अवसरों के साथ।  


2.आपके लिये सबसे प्रेरणादायी महिला कौन हैं (किसी बड़े पद पर और मनोरंजन की दुनिया में) और क्यों?

मैंने ग्रेसी सिंह को हमेशा ही अपने आदर्श के तौर पर देखा है, जोकि एण्डटीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ में मेरी को-स्टार भी हैं। उनकी एक्टिंग का हुनर और जिस तरह का उनका व्यक्तित्व है, वह वाकई सीखने लायक है। अपने काम के प्रति उनकी लगन मुझे अच्छी लगती है। पिछले एक साल में मैंने उनसे काफी कुछ सीखा है। उनके आस-पास बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा रहती है। मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि उनके साथ काम करने का मौका मिला। 


3.पिछले साल से ही, हम देश में महामारी की स्थिति से लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपने अपने काम को किस तरह संभाला, जब पूरी दुनिया पर छंटनी और आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे थे?

महामारी का समय हम सबके लिये चुनौतीपूर्ण रहा है। मेरे पिता चंडीगढ़ से हैं, जोकि पूरे दिल से पंजाबी हैं और उन्हें खाना बहुत पसंद है। उन्हें हमेशा से ही कुकिंग का शौक रहा है। पहले शूटिंग की व्यस्तता की वजह से मैं किचन में उनका हाथ नहीं बंटा पाती थी। लेकिन लाॅकडाउन के समय मुझे उनकी मदद करने और उनके साथ वक्त बिताने का मौका मिला। इसके अलावा इस दौरान मैंने कुछ नई चीजें सीखने में अपना समय लगाया। 



4.आपको क्या लगता है, आज के दौर की महिलाओं के सामने सबसे मुश्किल चुनौती कौन-सी है, खासकर कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर के बीच संतुलन बनाने में?

मुझे ऐसा लगता है कि महिलाएं भावनाओं के आगे कमजोर पड़ जाती हैं और अक्सर खुद से ज्यादा दूसरों का ध्यान रखती हैं। एक महिला को रुककर विचार करना चाहिये और अपने पर्सनल तथा प्रोफेशनल लाइफ से जुड़ी चीजों को साफ नजरिये से देखना चाहिये। काम और घर के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। एक महिला के तौर पर हम अक्सर दूसरों के सामने अपनी क्षमता साबित करने के लिये काम और अपनी जिंदगी के बीच की रेखा को देख नहीं पाते। वक्त के साथ-साथ हम एक प्रगतिशील दुनिया की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं, जोकि आज के दौर की महिलाओं की जरूरतों को समझती है। इसलिये, मुझे ऐसा लगता है कि मुखर होना एक बेहद जरूरी क्वालिटी है। 


 5.आपका किरदार दर्शकों के दिलोदिमाग पर छाया हुआ है। आपके हिसाब से इस भूमिका/किरदार की खासियत क्या है?

स्वाति, संतोषी मां (ग्रेसी सिंह) की परम भक्त हैं। वह अपने पति इंद्रेश (आशीष कादियान) को प्यार करने वाली पत्नी हैं। खुद से ज्यादा वह सबके लिये अच्छा करती है और सोचती है। वह नेक, ईमानदार, शांत और दयालु है। संतोषी मां से मिलने वाले लगातार मार्गदर्शन और सपोर्ट के साथ-साथ अपनी असीम भक्ति से स्वाति ने अपने जीवन में आने वाली कई बाधाओं को पार किया है। स्वाति की दृढ़ता, धैर्य और लगन उसे जीवन के मुश्किल समय से बाहर निकलने में मदद करती है। ये चीजें दर्शकों के सामने एक उदाहरण पेश करती हैं कि अपने रोजमर्रा के जीवन में अलग-अलग स्थितियों से निपटने के लिये इन सारी खूबियों को अपने अंदर लायें। 


 6. आपके हिसाब से महिला होना क्या है?

मुझे ऐसा लगता है कि जब कुछ समझ नहीं आ रहा होता है तो उस स्थिति में महिलाएं स्पष्टता लेकर आती हैं। वह अपने आस-पास के लोगों का पूरा ध्यान रखती हैं और उन्हें बिना किसी शर्त प्यार करती हैं। महिला होने का अहसास बेहद अनूठा है। वह सटीकता, लचीलेपन और धैर्य को परिभाषित करती हैं। मुश्किल घड़ी का सामना वह हिम्मत और इच्छाशक्ति से कर सकती हैं। 


7. आप सभी लड़कियों और महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?

सबसे पहले तो मैं सभी महिलाओं को ‘महिला दिवस’ की शुभकामनाएं देना चाहूंगी! खुद को प्यार करें। किसी और चीज से पहले खुद की आंतरिक खुशी का ध्यान रखें। अपने सहज ज्ञान को आगे बढ़ने दें और यह विश्वास करें कि कोई भी चीज असंभव नहीं है। विश्वास और हिम्मत बनाये रखें। मैं सभी लड़कियों को कहना चाहूंगी कि खुद के प्रति ईमानदार रहें और जब भी किसी को जरूरत हो उनकी मदद जरूर करें। एक महिला को एक महिला से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता।

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