कोरोना काल के योद्धा को सलाम - Shudh Entertainment

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कोरोना काल के योद्धा को सलाम

“हमे सीमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन असीमित आशा को कभी नहीं भूलना चाहिए।” मार्टिन लूथर किंग जूनियर की ये बातें कोरोना वायरस से लड़...

“हमे सीमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन असीमित आशा को कभी नहीं भूलना चाहिए।” मार्टिन लूथर किंग जूनियर की ये बातें कोरोना वायरस से लड़ते समय शायद बहुतों को याद नहीं आयी होंगी लेकिन कोरोना वॉरियर्स ने पूरी दुनिया में ये साबित किया कि हमें इस महामारी को अचानक से आयी बड़ी विपदा के रुप में नहीं देखना चाहिए। हमें इसे एक ऐसी चुनौती मानने की जरुरत है जिसे पार पाने के लिए कुछ अलग तरह से कोशिश करने होंगे। कमरकस कर लड़ने होंगे। जिसे हराने के लिए हार नहीं मानने वाले हौसले हमेशा साथ रखने होंगे। 

फ्रंट लाइन वॉरियर्स से लेकर कई ऐसे योद्धाओं ने इस महामारी से लड़ने में अपना योगदान दिया जिसका प्रभाव कईयों के जीवन पर पड़ा। वो सामने ना आते तो समस्या इतनी बड़ी बनी रहती जिसका सामना करना मुमकिन नजर नहीं आता।

भारत भर में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा याद कीजिए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जब इसका ऐलान क्या किया, बाजारों में एक भगदड़ सी मचने लगी। लोगों को लगने लगा कि उनके जरुरत के सामान आज के बाद नहीं मिलने वाले। जिसे जितना बन पड़ा इकट्ठा करता गया। लेकिन उनका क्या जिनके पास इतने संसाधन नहीं कि वो महीने, दो महीने का सामान एक बार में जमा कर सकें। 

चुनौती और विपत्ति की इस घड़ी में वो नेकदिल लोग नायक नजर आए जिनके एक एक प्रयास ने हजारों को इस मुश्किल समय में बचाए रखा। सड़कों पर रहने वाले, अस्पतालों में ईलाज कराने वाले, प्रतिदिन की मजदूरी से अपना पेट पालने वाले को किसी के सहारे की जरुरत थी। 

रौशनी और चकाचौंध से भरे दिल्ली जैसे महानगर में जब चारों ओर अंधेरा सा छाया नजर आने लगा तब श्री मनोज के जैन ने लॉकडाउन में भी घर में लॉक रहने की बजाए, बिना डरे, कोविड-19 जैसी महामारी से संक्रमित हो जाने का खतरा मोलते हुए घर से बाहर निकले और लोगों के पेट भरने का काम करने लगे।

लेकिन ये लड़ाई सिर्फ पेट भरने की नहीं थी। लोगों में छाई निराशा, डूबती उम्मीदें, ध्वनि जैसी तेज गति से पांव पसारता कोरोना, कई मोर्चों पर बहुत कुछ करने की जरूरत थी। आइए आपको कोरोना वॉरियर मनोज जैन के एक एक प्रयास को विस्तार से बताते हैं। 

“संपूर्ण बंदी की घोषणा हुई तो मैंने देखा कि लोगों को अस्पतालों के बाहर खाने और पीने की सुविधा नहीं मिल रही है। निराश और मुर्झाए चेहरे देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने खुद के पैसे से ही सबसे पहले LNJP अस्पताल के बाहर करीब तीन सौ लोगों के खाने पीने की सुविधा की शुरुआत की और इसके साथ ही कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में मैं कूद पड़ा,” उत्साह और आशा से भरे मनोज जैन ने कहा। 

खाने की क्वालिटी और बेहतर हो इसलिए मनोज जी शुद्ध खाने के लिए मशहूर फूडचेन ‘बिकानेर’ वालों के साथ भी जुड़े। फिर क्या था रुखा-सूखा खिलाने की बजाये उन्होंने लोगों को स्वाद के साथ सेहतमंद खाना खिलाना शुरु कर दिया।  

इस कार्य की शुरुआत में ही उन्होंने मन बना लिया था कि जब तक संभव हुआ लोगों को खाना खिलाते रहेंगे। नेताजी सुभाष मार्ग पर भोजन के पैकेट को बांटने का कार्य प्रतिदिन संपन्न किया जाता था। जिसमें करीब 1000 पैकेट सुबह के समय और करीब 300 पैकेट शाम के समय लोगों के बीच बांटे जाते थे। 

तीन सौ लोगों से बढ़ाकर 1000-1500 भूखे लोगों को पेट भरने का काम करना मनोज जी और उनकी टीम पूरे सिद्दत से करती रही। लेकिन जब लॉ एण्ड ऑर्डर के प्रबंधन में दिक्कत आने लगी, तब दिल्ली पुलिस और वहाँ के स्थानीय RWA के निवेदन करने पर करीब डेढ़ महीने बाद इस परोपकार के कार्य को स्थगित करना पड़ा।  

लेकिन मनोज जी यहीं नहीं रुके। महामारी ने आम जीवन को अस्त-व्यस्त किया तो उसे ठीक करने में मनोज जी की भागेदारी और बढ़ चढ़ कर नजर आने लगी। इसी का नतीजा है कि उन्होंने ना सिर्फ लोगों के भोजन की व्यवस्था की, उन्होंने करीब तीन लाख मास्क और बीस हजार सैनिटाइजर की बोतलें भी बांटी। 

ऐसा करने की प्रेरणा कहाँ से मिली और धन कैसे जुटाए इस सवाल पर मनोज जी कहते हैं, “व्यक्ति जब तक व्यक्तिगत चिन्ताओ के दायरे से ऊपर उठकर पूरी मानवता की वृहद चिंताओं के बारे में नहीं सोचता तब तक उसने जिंदगी जीना ही शुरू नहीं किया है।” 

महामारी के कारण जब कारोबार ठप होते जा रहे थे, लोगों की नौकरियाँ छीन रही थीं, व्यवसाय पर प्रतिकूल असर दिखने लगा था, अर्थव्यस्था चरमरायी सी नजर आ रही थी, ऐसे में अपनी जेब से औरों के भले के लिए लड़ना तथा दूसरों को भी साथ में जोड़ने की कला कोई मनोज जी से सीखे। 

वो कहते हैं कि जीवन में जब दौड़ना मुश्किल लगने लगे तो चलते रहने की कोशिश करनी चाहिए, जब चलना चुनौतीपूर्ण हो जाए तो रेंगने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन स्थिर रहना ठीक नहीं। हमें लगातार आगे बढ़ते रहना चाहिए और दूसरों में ऊर्जा भरते रहना चाहिए।

निराशा से घिरे कोविड काल में मनोज जी लगातार यही करते रहे। जब हाथ धोने, मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने में भी लोग कतरा रहे थे तब उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए जागरुकता के अभियान को फ्रंट से लीड किया।

कविता कहानियों के माध्यम से वो सोशल मीडिया में तरह तरह के संदेश देते रहे और WMD यानी कि वाश-Wash, मास्क-Mask डिस्टेंस-Distance का पाठ पढ़ाते रहे। 

महामारी के खिलाफ लड़ाई में कभी वो मास्क वॉरियर बन जाते तो कभी सोशल डिस्टेंसिंग के फायदे की बात बताते। 

जिस महामारी के खिलाफ दुनिया भर मे लोगों ने घुटने टेके, जहाँ यूरोपियन देशों ने भी हार मान ली, वहीं भारतवर्ष में मनोज जी जैसे योद्धाओं के अथक प्रयासों ने हजारों लोगों में जीवन की उम्मीद बनाए रखी। 

लोगों को जागरुक करने की कोशिश करने के साथ, लोगों के रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने की भी उन्होंने भरपूर कोशिश की। अर्सेनिक एल्बम-30 की दवा कोविड के खिलाफ जंग में जब कारगार होती दिखी तो उन्होंने इस दवा की हजारों बोतलें मुफ्त में बांटी। 

“कोविड से बचने के लिए सेफ्टी मेजर्स का पालन करना तो जरुरी था, साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी उतना ही जरुरी था। इसलिए जैसे ही चिकित्सकों ने इस दवा के जरिए हमारे एम्यूनिटी में सुधार की बात कही हम इसको नि:शुल्क बांटने का बीडा उठा लिये”, मनोज के जैन ने कहा। 

एम्यूनिटी को सुरक्षित और मजूबत बनाए रखने के लिए उनकी संस्था ने ‘अनार रस’ नाम के काढ़ा के पैकेट भी तैयार करवाए। इसमें घर की रसोई में मिलने वाली गुणकारी चीजों से लेकर जरूरी आयुर्वेदिक सामानों का इस्तेमाल किया गया था जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया।

नयू नॉर्मल में हमारा व्यवहार कैसा हो और हम कैसे खुद को और दूसरों को बचाए इसके लिए सहयोग दिल्ली, राजधानी के लोगों का खूब सहयोग करती नजर आयी। जब उनकी टीम ने इसी काम को सोशल मीडिया के जरिए करना चाहा तो इससे राजधानी क्षेत्र से बाहर केलोगोें को भी इसका फायदा मिला। 

‘मास्क नहीं तो टोकेंगे, कोरोना को हम रोकेंगे’, ‘बदलकर अपना व्यवहार करें कोरोना पर वार’ जैसे स्लोग्नस को क्रिएटिवली यूज कर के वो और उनकी टीम जनमानस को जागरुक करने का काम करती रही।

अगर मनोज जी कोरोना योद्धा की तरह अलग अलग तरीके से लड़ते रहे तो उनके इस कार्य से सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं प्रेरणा लेती रहीं और सराहती रहीं। उन्हें किसी ने कोरोना वॉरियर का सर्टिफिकेट दिया तो किसी ने कोरोना योद्धा का सम्मान। लेकिन सामाजिक कार्यों को अपना लक्ष्य बना चुके मनोज जी को कभी किसी सम्मान की चाहत नहीं रही। 

उनकी इच्छाएं लोगों के जीवन में जिंदादिली और जीने के हौसले को भरना है और इसके लिए वो अथक प्रयास करने का प्रण ले चुके हैं।

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