लीक से हटकर किरदार निभाना और उन्हें रीयल बनाने के लिए कैरेक्टर में समा जाना यही है फेमस एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पहचान। उनका कहना है कि ...
लीक से हटकर किरदार निभाना और उन्हें रीयल बनाने के लिए कैरेक्टर में समा जाना यही है फेमस एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पहचान। उनका कहना है कि एक्टर होने के जितने फायदे हैं, उससे कहीं ज्यादा कुछ नुकसान भी हैं। अब आकर एक्टर को टारगेट करना लोगों के लिए बेहरद आसान हो गया है। कोई भी अब आसानी से एक्टर्स को बदनाम कर सकता है। पिछले 5 से 6 महीने से हम यह देख रहे हैं। इंडिया टुडे को दिए अपने इंटरव्यू में नवाजुद्दीन ने कहा कि एक्टर होने का एक बड़ा फायदा यह है कि आप एक ही जिंदगी में कई तरह की जिंदगी जी लेते हैं।
साल 2020 भले ही लोगों के लिए खराब साबित रहा हो, लेकिन यह साल नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए अच्छा साबित हुआ। उन्होंने इस साल कई हिट फिल्में दी हैं। उनकी घूमकेतू, रात अकेली है और सीरियस मेन जैसी फिल्मों में उनके काम को लोगों ने खूब सराहा है। इतना ही नहीं रात अकेली है में अपने कैरेक्टर के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर फिल्मफेयर ट्रॉफी भी मिली। अपने अलग तरह के किरदार के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री अब अलग राह पर है। फिलहाल फिल्ममेकर इंडस्ट्री में कुछ बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं और अलग तरह के किरदार बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बॉलीवुड में हमेशा से हीरो का रोल स्टीरियोटाइप रहा है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि किसी भी फिल्म में हीरो के कैरेक्टर की जो इमेज इस समय लोगों के जहन में बनी हुई है वह आने वाले समय में बदल सकती है। फिल्ममेकर्स ने पुराने फॉर्म्युले से थोड़ा अलग हटकर फिल्में बनाने की कोशिश शुरू की है। हीरो की जो स्टीरियोटाइप इमेज है वह भी बदल रही है। अब बदलाव का समय आया है। लोकडाउन के दौरान लोगों ने खूब सिनेमा देखा है। ऐसे में लोग नई कहानी और अलग तरह के कैरेक्टर्स की डिमांड करने लगे हैं और यह अच्छी बात भी है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के चलते सिनेमा में हो रहे बदलाव के सवाल पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहन है कि हैं कि बीते कई सालों से फिल्ममेकर्स की ओर से बदलाव की कोशिश की जा रही थी। लेकिन असल बदलाव लोगों तक पहुंच को लेकर हुआ है। इससे लोग एक ही प्लेटफॉर्म पर फिल्में देख सकते हैं। फिर अब तो लोगों के पास फिल्म देखकर तुरन्त फीडबैक देने का ऑप्शन भी है। वह कहते हैं कि सिनेमा में काफी लंबे समय से बदलाव की कोशिशें चल रही थीं। 1998 में आई सत्या और 1994 की Bandit Queen जैसी फिल्मों ने सिनेमा की इमेज को बदलने का काम किया था।
No comments