फिल्म: दुर्गामती रेटिंग:1/5 अवधि: 2.35 घंटे भूमि पेडनेकर की फिल्म दुर्गामती का ट्रेलर देखकर लगा था कि वह किसी स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर को प्ले करन...
फिल्म: दुर्गामती
रेटिंग:1/5
अवधि: 2.35 घंटे
भूमि पेडनेकर की फिल्म दुर्गामती का ट्रेलर देखकर लगा था कि वह किसी स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर को प्ले करने जा रही हैं। किरदार का लुक भी ऐसा जिसके अपने बेहतरीन डायलॉग्स होंगे। बल्कि भूमि ही पूरी कहानी के इर्द-गिर्द होंगी। इतना ही नहीं देखकर तो ये भी लगा था कि फिल्म में कई ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलेंगे। बात अगर फिल्म के पोस्टर की करें तो इतना धांसू था कि मानों कोई मेगा बजट फिल्म रिलीज होने वाली है। अब उम्मीदें तो सभी के मन में जगेंगी कि पोस्टर ऐसा है तो फिल्म कैसी होगी।
पेड़ पर लटकती लाश, सीढ़ियों पर गिरी महिला और जान बचाने के लिए भागते ढेर सारे बच्चे। ये दुर्गामती का शुरुआती सेटअप है जिसे देख किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। बैकग्राउंड स्कोर भी ऐसा कि सीन और ज्यादा बड़ा लगने लगता है। ये सारे कांड एक ऐसे गांव में हो रहे हैं जहां पर एक पुरानी हवेली है। जिसे रानी दुर्गामती की हवेली के नाम से जाना जाता है। इस हवेली को लेकर कई सवाल उठते हैं। कई साल पहले रानी दुर्गामती को बुरी तरह मौत के घाट उतारा गया था। उसके बाद से उस हवेली में उनकी आत्मा भटक रही है। गांव वाले उस हवेली से दूर ही रहते हैं।
इसी तरह कहानी आगे बढ़ती है और सामने आते हैं जल संसाधन मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) जो खुद को जनसेवक बताते हैं। उन्होंने अपनी एक ऐसी इमेज बना रखी है कि हर कोई उन्हें ईमानदार और मसीहा के रूप में देखता है। उनका रुतबा इसलिए इतना ज्यादा बढ़ा है क्योंकि उन्होंने जनता के बीच अपनी छवि एक अच्छे इंसान की बना रखी है। इसी बीच एक केस चल रहा है जहां पर प्राचीन मंदिरों से भगवान की मूर्तियां गायब हो रही हैं। इस केस की वजह से गांव वाले नाराज हैं और सरकार की इमेज डैमेज हो रही है।
इसके बाद दुर्गामती में आता है तीसरा प्लॉट जहां पर हमारी मुलाकात होती है चंचल कुमार (भूमि पेडनेकर) से जो एक IAS ऑफिसर हैं. उनकी लगन को देख ईश्वर प्रसाद भी उन्हें काफी मान देते हैं. लेकिन अपने काम और नीयत से सभी को इंप्रेस करने वाली चंचल कुमार एक बड़ी मुसीबत में फंस जाती हैं. उन्होंने अपने प्रेमी और लोगों के हक के लिए लड़ने वाले शक्ति (करण कपाड़िया) को गोली मार दी है. उस वजह से इस IAS ऑफिसर को जेल की हवा खानी पड़ रही है।
अब आता है कहानी का चौथा प्लॉट जहां पर हम मिलते हैं सीबीआई ऑफिसर (माही गिल) से जिन्हें जिम्मेदारी दी गई है कि मंत्री ईश्वर प्रसाद को भ्रष्टाचार मामले में फंसाने की. वो जो गांव में मूर्तियां चोरी हो रही हैं, उसी केस में ईश्वर को फंसाने की तैयारी है. अब क्योंकि चंचल भी ईश्वर के करीब रही है ऐसे में उससे पूछताछ की जानी है. लेकिन गलत काम हमेशा छिपकर होते हैं. इसलिए चंचल को जेल से सीधा दुर्गामती हवेली ले जाया जाता है और वहां पर उससे पूछताछ की जाती है।
यही है इस फिल्म की कहानी. सवाल बस ये है कि अब चंचल का क्या हाल होगा? क्या दुर्गामती की भटकती आत्मा चंचल को मार देगी? क्या ईश्वर प्रसाद को भ्रष्टाचारी साबित कर दिया जाएगा? चोरी होने वाली मूर्तियों का क्या राज है? डायरेक्टर अशोक की ये फिल्म देखकर इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
155 मिनट की फिल्म है. उसमें भी पूरे 120 मिनट तक आपको चकरी की तरह घुमाया जाएगा. ये जो आप को टुकड़ों में कहानी समझाई है, ऐसा इसलिए किया है क्योंकि फिल्म देखकर यही लगता है. कई कहानियां फिल्म के अंदर चलेंगी, लेकिन उनके बीच का कनेक्शन ढूंढते-ढूंढते आप अच्छे से घूम जाएंगे. दुर्गामती के मेकर्स चाह रहे हैं कि हम उनके साथ दो घंटे अच्छे से कॉपरेट करें क्योंकि उसके बाद ही वे अपनी कहानी के राज खोलने का मन बनाते हैं. लेकिन उनका दर्शकों से इतनी उम्मीद लगाके बैठना बेफिजूल है. इतनी हिम्मत और पेशेंस किसी में नहीं।
अब इस टूटी-फूटी कहानी में कई सारे स्टार्स हैं. भूमि पेडनेकर की वजह से तो ये फिल्म और बड़ी बन गई. लेकिन इस बार कहना पड़ेगा कि भूमि से बहुत बड़ी चूक हो गई है. पूरी फिल्म में भूमि सिर्फ और सिर्फ चिल्ला रही हैं. उनके मुंह से ऊटपटांग डॉयलाग्स की हवाबाजी हो रही है. नेता के रोल में अरशद भी ठीक-ठाक ही कहे जाएंगे. बस ये देखकर अच्छा लगता है कि उन्हें कॉमिक के अलावा सीरियस रोल भी दिए जा रहे हैं. एक्ट्रेस माही गिल का काम औसत ही रह गया है. सीबीआई ऑफिसर के रोल में थोड़ी कड़क दिखती तो मजा आ जाता. सहकलाकार के रूप में जिशू सेन गुप्ता और तान्या अबरोल भी बेदम ही दिखे हैं।
दुर्गामती, साउथ फिल्म Bhaagamathie की ही रीमेक है। दोनों फिल्मों के डायरेक्टर भी सेम हैं। लेकिन अनुष्का शेट्टी की वजह से Bhaagamathie फिर भी देखने लायक बन गई थी। लेकिन दुर्गामती के साथ ऐसा नजर नहीं आ रहा है। क्लाइमेक्स पर तो आप अपना सिर ही पकड़ लेंगे। ऐसे में भूमि की इस नई पेशकश को ना भी देखें तो चलेगा।
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